सोडूर-पैरी-महानदी संगम के पूर्व में बसा राजिम अत्यंत प्राचीन समय से छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र रहा हैं। दक्षिण कोसल के नाम से प्रख्यात क्षेत्र प्राचीन सभ्यता, संस्कृति एवं कला की अमूल्य निधि संजोयें इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और कलानुरागियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ हैं। छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाने वाला Rajim शहर राजधानी रायपुर से दक्षिण-पूर्व की दिशा में 45 किमी की दुरी पर, देवभोग जाने वाली सड़क मार्ग पर Rajim स्थित हैं।
Rajim Chhattisgarh | राजिम छत्तीसगढ़
राजिम छत्तीसगढ़ (Rajim Chhattisgarh) सांस्कृतिक ही नहीं अपितु धार्मिक, पुरातात्विक महत्ता भी रखता हैं। यहाँ छत्तीसगढ़ वासी श्राद्ध, दर्पण, पर्वस्नान, दान आदि धार्मिक कृत्यों के लिए इसकी सार्वजनिक महत्ता आंचलिक लोगो की परम्परागत आस्था, श्रद्धा एवं विश्वास की स्वाभाविक परिणित के रूप में सतत प्रवाहमान हैं। क्षेत्रीय लोग इस संगम को प्रयाग- संगम के समान ही पवित्र मानते हैं। इनका विश्वाश हैं की Rajim Chhattisgarh के इस त्रिवेणी संगम स्थल में स्नान मात्र से मनुष्य के समस्त कल्मष नष्ट हो जाते हैं। यही कारण हैं की इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहते हैं। तथा मृत्युपरांत वह विष्णुलोक प्राप्त करता हैं। क्षेत्रीय लोगो की मान्यता हैं की जगन्नाथपुरी की यात्रा उस समय तक सम्पूर्ण नहीं होती, जब तक राजिम की यात्रा नहीं कर लेता।
History of Rajim | राजिम का इतिहास
राजिम से लगे पितईबंद नामक ग्राम से प्राप्त मुद्रानिधि द्वारा पहली बार विक्रमादित्य नामक सर्वथा अज्ञात नरेश की एतिहासिकता प्रकाश में आई हैं। साथ ही महेन्द्रादित्य के साथ उसके पारिवारिक सबंध का होना भी प्रमाणित हो सका हैं। महाशिव तीवरदेव का राजिम से प्राप्त ताम्रपत्र से पांडुकुल के राजाओं की प्रारंभिक जानकारी मिलती हैं। बिलासतुंग के नलवंश की इतिवृत्ति के ज्ञान का एकमात्र साधन राजीवलोचन मंदिर से प्राप्त शिलालेख हैं। रतनपुर के कलचुरी नरेश जाजल्यदेव प्रथम एवं रत्नदेव द्वितीय की कतिपय ऐसी विजयों का उल्लेख, उनके सामंत जगतपालदेव के राजीव मंदिर से ही प्राप्त शिलालेख में हुआ हैं।
यहाँ के मंदिर एवं देव-प्रतिमाएं लोगों की धार्मिक आस्था पर प्रकाश डालती हैं। साथ ही ये भारतीय स्थापत्यकला एवं मूर्तिकला के इतिहास में छत्तीसगढ़ अंचल के ऐश्वर्यशाली योगदान को लिपिबद्ध करते समय अपने लिए विशिष्ट स्थान की अपेक्षा रखने वाले उदाहरण हैं। यहाँ प्राप्त मृण्यमय अवशेषों के अध्ययन एवं परिक्षण द्वारा ही अब राजिम में पल्ल्वित संस्कृति का प्रारम्भ ताम्रश्म (चाल्कोलिथिक) युग में होना संभावित सत्य के रूप में घोषित किया गया हैं।
Temple of Religious Place | राजिम के मंदिर
ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। Rajim Temple या राजिम के मंदिरों को इनकी स्थिति के आधार पर अधोलिखित चार वर्गों में विभक्त कर सकते हैं –
- (क) पश्चिमी समूह: कुलेश्वर (9वीं सदी), पंचेश्वर (9वीं सदी), तथा भूतेश्वर महादेव (14वीं सदी) के मंदिर।
- (ख) मध्य समूह: राजीवलोचन (7वीं सदी), वामन, वाराह, नृसिंह, बद्रीनाथ, जगन्नाथ, राजेश्वर एवं राजिम तेलिन मंदिर।
- (ग) पूर्वी समूह: रामचंद्र (8वीं सदी) का मंदिर।
- (घ) उत्तरी समूह: सोमेश्वर महादेव का मंदिर।
नलवंशी नरेश बिलासतुंग के राजीव लोचन मंदिर अभिलेख के आधार पर अधिकांश विद्वानों ने राजीव लोचन मंदिर को 7वीं शताब्दी में निर्मित माना हैं। इस मंदिर के विशाल प्रकोष्ठ अंतिम कोनों पर बने वामन, वाराह, नृसिंह, तथा बद्रीनाथ में मंदिर स्वतंत्र वास्तुरूप के उदाहरण नहीं माने जा सकते हैं। ये मुख्य मंदिर के अनुषंगी देवालय हैं। राजिम के मंदिर सामान्यतः 7वीं-8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के बीच बने हुए हैं।
Rajiv Lochan Mandir | राजीव लोचन मंदिर
एक विशाल आयताकार प्रकोष्ठ के मध्य में बनाया गया हैं। भू-विन्यास योजना में राजीव लोचन का मंदिर – महामंडप, अंतराल, गर्भगृह और प्रदक्षिणा-पथ, इन चार विषिष्ट अंगों में विभक्त हैं Rajiv Lochan Mandir.
#01 महामण्डप – नगर प्रकार के प्राचीन मंदिरों में महामण्डप सामान्यतः वर्गाकार बनाये जाते थे, परन्तु राजिम के प्रायः सभी मंदिरों की भांति इस मंदिर का मण्डप भी आयताकार हैं। इसके प्रवेश द्वार की अन्तः भित्ति कल्पलता अभिकल्प द्वारा सुशोभित हैं। बीच-बीच में लताओं की विहार-रत यक्षों की भिन्न-भिन्न चित्राओं तथा मुद्राओं में मूर्तियाँ उकेरी गयी हैं। किसी-किसी जगहों पर मंगल विहंगो का भी चित्रांकन किया गया हैं।
#02 अन्तराल – अन्तराल गर्भ गृह और महामंडप के मध्य बनाये जाने वाला वास्तु रुप हैं। इसमें नाग-नागिन विभिन्न मुद्राओं में मिथुन की आकर्षक मूर्तियाँ, गरुडासीन विष्णु भगवान की प्रतिमा सुसज्जित हैं।
#03 गर्भगृह – इसमें काले पत्थर में बने विष्णु की चतुर्भुजी मूर्ति बनी हुई हैं। जिसके हाथ में शंख, गदा, पदम् और चक्र हैं। भगवान राजीव लोचन के नाम से इसी मूर्ति की पूजा की जाती हैं।
कुलेश्वर महादेव मंदिर | Kuleshwar Mahadev temple
कुलेश्वर महादेव का मंदिर महानदी, सोढ़ुर, और पैरी नदी के संगम के बीचो-बीच बना हुआ हैं। Kuleshwar Mahadev Mandir का निर्माण भी एक प्रकार की जगती पर किया हुआ हैं। इस मंदिर को अन्य मंदिर की तरह न बना कर अष्टभुजाकार रूप में प्रतिष्ठित किया गया हैं। इसका स्पष्ट उद्देश्य हैं की बाढ़ से होने वाले कटाव की प्रक्रिया से सुरक्षित बनाये रखना हैं। यह मंदिर 17 फुट ऊँची हैं। तथा इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पहले 22 सीढियाँ थी, लेकिन अभी हाल-फ़िलहाल नीचे दबी 9 सीढियाँ बाहर आ गयी जिससे की यह बढ़कर 31 सीढियाँ हो गयी हैं।
रामचंद्र मंदिर | Ramchandr temple
यह मंदिर मूलतः ईंटो से बना हुआ हैं। प्राप्त प्रमाणों के आधार पर यह रतनपुर के कलचुरी राजाओं के सामंत जगतपालदेव द्वारा पुनः निर्माण करवाया गया हैं। इस मंदिर में मकर वाहिनी गंगा , राजपुरुष ,गणेश और नृवाराह की प्रतिमा हैं। रामचंद्र मंदिर के प्रदक्षिणापथ से सबंधित प्रवेश द्वार, शाखाओं से युक्त हैं तथा इनके अधोभाग पर गंगा-यमुना नदी देवियों की मूर्तियां हैं। राजिम के किसी भी मंदिर के प्रवेश द्वार पर नदी-देवियों की मूर्तियाँ नहीं हैं।
पंचेश्वर महादेव मंदिर | Pancheshwar Mahadev temple
यह रामचंद्र मंदिर की भांति ईटों का बना हुआ हैं। पंचेश्वर महादेव मंदिर नदी के तट पर बनाया गया हैं। तथा पश्चिमाभिमुख हैं। वतर्मान में Pancheshwar Mahadev temple का केवल विमान ही बचा हुआ हैं और वह भी अत्यधिक जर्जर अवस्था में हैं।
राजिम तेलिन मंदिर | Rajim telin temple
Rajim telin temple का वास्तुशिल्प पंचेश्वर तथा भूतेश्वर मंदिर के वास्तुशिल्प से समरूपता रखता हैं। राजिम तेलिन मंदिर राजेश्वर तथा दानेश्वर मंदिर के पीछे स्थित हैं। वर्तमान में इस मंदिर का विमान प्राचीन निर्मित्त का प्रतिनिधि हैं।
भूतेश्वर महादेव मंदिर | Bhuteshwar Mahadev temple
Bhuteshwar Mahadev temple नदी के तट पर पंचेश्वर महादेव मंदिर के बाजू में अवस्थित हैं। भूतेश्वर महादेव मंदिर भी ऊँची जगती पर स्थापित किया गया वास्तु रूप हैं। यह मंदिर भू-विन्यास में यहाँ के अन्य पूर्ण मंदिरों की तरह महामण्डप, अंतराल, और गर्भगृह से युक्त हैं। उत्सेघ अथवा ब्रम्हसूत्रीय व्यवस्था में इस मंदिर का विमान अधिष्ठान, जंघशिखर और मस्तक से युक्त हैं। विमान नागर प्रकार का हैं। तथा कलचुरी कालीन मंदिर वास्तु की परम्परा में बनाया गया हैं।
जगन्नाथ मंदिर | Jagannath temple
राजीव लोचन मंदिर के प्रकार के उत्तरी-पश्चिमी कोने पर बने नृसिंह मंदिर के उत्तरी बाजु में परिसर से बाहर यह मंदिर भी एक जगती पर बनाया गया हैं।
सोमेश्वर महादेव मंदिर | Someshwar Mahadev temple
Someshwar Mahadev temple राजिम की वर्तमान बस्ती के ऊपर में थोड़ी दुरी पर नदी के तट से थोड़ा हटकर स्थित हैं। स्थापत्य की दृष्टि से यह अपेक्षाकृत अल्प महत्वपूर्ण हैं तथा वर्तमान रूप में बहुत बाद की कृति प्रतीत होती हैं। परन्तु वर्तमान महामण्डप से लगा हुआ एक प्राचीन मंदिर का अवशेष हैं तथा अपनी शिल्पशैली में राजीव लोचन मंदिर के महामंडप के स्तम्भों से समरूपता रखता हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ राजेश्वर मंदिर, दानेश्वर मंदिर भी विद्यमान हैं, जो इन सभी मंदिरों की तरह बनाने का प्रयास हुआ हैं।
Rajim Mela | राजिम मेला
राजिम मेला को माघी पुन्नी मेला के नाम से भी जाना जाता हैं। यह Rajim Mela प्रति वर्ष माघ माह के पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर फाल्गुन मास के महाशिवरात्रि (कृष्ण पक्ष त्रयोदशी) तक चलता हैं। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के प्रत्येक जिले से हजारों यात्री संगम स्नान करने और भगवान् राजीव लोचन एवं कुलेश्वर महादेव के दर्शन करने आते हैं। यहाँ का सबसे बड़ा पर्व महाशिवरात्रि हैं।
How to Reach | कैसे पहुंचे
दोस्तों यहाँ पहुंचने के लिए आप सभी तरह के माध्यमों का प्रयोग कर सकते हैं –
- हवाई मार्ग – निकटतम हवाई अड्डा – स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा माना रायपुर
- रेलवे स्टेशन – रेलवे जंक्शन रायपुर सबसे निकटतम रेलवे माध्यम हैं।
- सड़क मार्ग – रायुपर से राजिम की दुरी – 45 किमी हैं, महासमुंद से – 40 किमी, तथा इनके जिला गरियाबंद से – 50 किमी की दुरी में स्थित हैं।
Nearest Places in Rajim Chhattisgarh
Rajim Chhattisgarh के आसपास घूमने-देखने लायक बहुत सारे स्थान हैं।
- चम्पारण – राजिम विभिन्न मंदिरों का गढ़ हैं, जहाँ देखने लिए बहुत सारे प्राचीन मंदिर व त्रिवेणी संगम हैं। जिसकी दुरी मात्र 15 किमी हैं।
- जंगल सफारी रायपुर – विभिन्न प्रकार के जानवरों के लिए महशूर हैं जंगल सफारी। इसमें खुले में विचरण करते शेर, बाघ, बंगाल टाइगर, जैसे जानवरों को अपने आँखों से दीदार कर सकते हो। जिसकी दुरी मात्र 27 किमी हैं।
- घटारानी जलप्रपात – रायपुर के सबसे नजदीक और खूबसूरत जलप्रपात हैं यह, जिसकी दुरी यहाँ से 27 किमी हैं।
- जतमई वॉटरफॉल – बहुत ही मनमोहक जलप्रपातों के लिए प्रसिद्द यह जलप्रपात घटरानी से बहुत ही कम दुरी पर, 10Km में स्थित हैं। तथा यहाँ से 32 किमी पर स्थित हैं।
राजिम माघी पुन्नी मेला | छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा मेला | Rajim Maghi Punni Mela | FaQ
This video Making by YouTuber DK808 –
Rajim Chhattisgarh Pin Code?
493885
Why Rajim Called Prayag of Chhattisgarh?
Due to the confluence of three rivers (Sodhur, Parri, & Mahanadi), it is called Prayag.
Raipur to Rajim Distance?
45 Km.
is are parking arrangment?
Yes.
Best time to visit rajim chhattisgarh?
Star a Rajim Maghi Punni Mela.